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रेडियोसक्रियता क्या होती है ? what is Radioactivity ?

 

रेडियोसक्रियता क्या होती है ?  what is Radioactivity ?

मैडम क्यूरी और पियरे क्यूरी ने 1898 में पता लगाया कि यूरेनियम और उनके यौगिक से रेडियो सक्रिय किरणों का निकलना एक परमाणु जनित क्रिया है। क्यूरी ने ही बताया कि थोरियम धातु में रेडियो सक्रिय तत्व विद्यमान है। रेडियो सक्रियता की खोज के लिए इन तीनों वैज्ञानिकों Henri Becquerel, Marie Skłodowska-Curie और Pierre Curie को 1903 में संयुक्त रुप से नोबेल पुरस्कार दिया गया।

रेडियो सक्रिता वह प्रक्रिया है, सिजमें परमाणु है, जिसमें परमाणु के नाभिक उच्च ऊर्जा युक्त विकिरणों या परमाणविक कणों का उत्सर्जन करते हैं। वैसे सभी तत्व जिनकी परमाणु संख्या लेड 82 से अधिक है, रेडियोधर्मी हें।
रेडियो सक्रिय कण या किरणें तीन प्रकार की होती हैं- अल्फा गण, बीटा कण तथा गामा

अल्फा कण या किरण :- (खोज-बेकेरल ने)

  1. इसका आवेश 2 इकाई धनात्मक तथा द्रव्यमान 4 इकाई होता है।
  2. इसे 2He4 के रूप में निरूपित किया जाता है।
  3. आयनन क्षमता बहुत अधिक, β कणों से लगभग 100 गुना।
  4. ये कैथोड की ओर विचलित होते हैं।

बीटा कण या किरण :- (खोज-रदफोर्ट)

  1. इसका द्रव्यमान 1 इकाई ऋणावेश तथा द्रव्यमान नहीं होता है।
  2. यह इलेक्ट्र E¹ के रूप में निरूपित किया जाता है।
  3. आयनन क्षमता कम, γ किरणों से 100 गुना।
  4. वेधन क्षमता α कणों से 100 गुना।
  5. एनोड की ओर विचलित होती है।

गामा कण या किरणें :- (मेरी और पियरे क्यूरी)

  1. ये बहुत कम तरंग दैध्र्य के विघुत चुंबकीय विकिरण हैं।
  2. इसे γ के रूप में निरूपित कया जाता है।
  3. आयनन क्षमता बहुत कम
  4. वेधन क्षमता β कणों से 100 गुना।
  5. ये विचलित नहीं होते।

रेडियो एक्टिव तत्वों को 4 विघटन श्रेणियों में बाॅटा गया है जिनके नाम क्रमशः थोरियम श्रेणी, नेप्यूनियम श्रेणी, यूरेनियम श्रेणी तथा ऐक्टीनियम श्रेणी हैं। इनमें से नप्चूनियम श्रेणी कृत्रिम श्रेणी है तथा अन्य तीन प्राकृतिक श्रेणियाॅ हैं।

नाभिकीय विखण्डन (Nuclear Fission ) :- वह अभिक्रिया जिसमंे एक भारी परमाणु का नाभिक दो या दो से अधिक हल्के नाभिकों में टूटता है तथा इसके साथ दो या तीन न्यूट्रान उत्सर्जित होते हैं। इस विखंडन के फलस्वरूप गामा किरणों के रूप में तथा उत्सर्जित कणों की गतिज ऊर्जा के रूप में बड़ी मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। ऊर्जा ;200(MeV)

नाभिकीय विखण्डन के उपयोगः-

परमाणु बम (Atomic Bomb ) :- यह अनियंत्रित नाभिक विखंडन की क्रिया पर आधारित है। 1945 के द्वितीय विश्व युद्ध में हिरोशिमा तथा नाकासा में दो परमाणु बम प्रयोग किये गये, जिनमें से पहला U-235 तथा दूसरा Pu-239 (प्लूटोनियम) का बना हुआ था।

परमाणु भट्ठी या न्यूक्लियर रिएक्टर (Atomic Pile or Nuclear Reactor) :- यह नियंत्रित नाभिकीय विखंडन की क्रिया पर आधारित है। इसमें नाभिकीय ईधन के रूप में विखंडनीय पदार्थ प्रायः संबर्द्धित यूरेनियम (Enriched Uranium) होता है। विखंडन की श्रंखला अभिक्रिया को नियंत्रित करने के लिए कैडमियम व बोराॅन की नियंत्रक छड़ों का प्रयोग करते हैं जो कि तत्व मुक्त न्यूट्रानों को अवशोषित कर लेती है। नियंत्रक छड़ो के अन्दर ले जाने से श्रंखला अभिक्रिया धीमी हो जाती है तथा उन्हें बाहर निकालने से फिर से श्रंखला अभिक्रिया की गति तेज की जा सकती है। श्रृंखला अभिक्रिया अभिक्रिया में विखंडनों के पश्चात उत्पन्न होने वाले न्यूट्रोनों की गति अत्यधिक होती है। उनकी गति को मंद करने के लिए भारी जल (D2O) ग्रोफाइट या बेरीलियम आॅक्साइड का प्रयोग किया जाता है। इसलिए ये पदार्थ न्यूट्राॅन मंदक कहलाते है। रिएक्टररों में प्रशीतक के रूप में जल तथा कार्बन डाई आक्साइड का प्रयोग किया जाता है।

खौलते पानी किस्म के रिएक्टरों (BWR Boiling Water Reactors)में न्यूट्राॅन मंदक व प्रशीतक के रूप में साधरण जल H2O का प्रयोग होता है तथा दाबानुकूलित भारी रिएक्टरों में न्यूट्राॅन मंदक व प्रशीतक के रूप में भारी जल का प्रयोग होता है। भारतीय रिएक्टरों में अधिकांशतः भारी जल D2O का ही प्रयोग होता है।

नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion) :- जब दो या दो से अधिक हल्के नाभिक संयुक्त होकर एक भारी नाभिक बनाते हैं तथा अत्याधिक ऊर्जा विमुक्त करते हैं तो इस अभिक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं। यह अभिक्रिया सूर्य तथा अन्य तारों में संपन्न होती है और अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। सूर्य से प्राप्त प्रकाश और ऊष्मा ऊर्जा का स्रोत नाभिकीय संलयन ही है।

नाभिकीय संलयन के उपयोगः-

हाइड्रोजन बम :- यह संलयन क्रिया पर आधारित है। संलयन के लिए आवश्यक उच्च ताप व उच्च दाब की परिस्थितयाॅ एक आंतरिक विखंडन बम (परमाणु बम) के विस्फोट द्वारा उत्पन्न की जाती है। प्राथम हाइड्रोजन बम सन् 1952 में बनाया गया।

रेडियो एक्टिव समस्थानिकों के उपयोग :- परसिंचरण तंत्र में रक्त के थक्के का पता लगाने के लिए सोडियम Na -24 का, रूधिर की खराबी से उत्पन्न रोगों तथा ल्यूकीमिया के उपचार में P-32ए थायराइड ग्रंथि का विकार ज्ञात करने तथा बे्रन ट्यूमर के उपचार में 1-131 अरक्तता का रोग ज्ञात करने में Fe -59 कैंसर के उपचार में कोबाल्ट Co-60 का, कार्बन काल निर्धारण विधि C-14 द्वारा जीव (पौधे का जंतु) के अवशेषों (Fossils) का पता लगाने में तथा यूरेनियम काल निर्धारण विधि U-238 द्वारा पृथ्वी तथा पुरानी चट्टानों की आयु का पता लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त इनका उपयोग जंतु एवं पादपों में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं में ट्रेसर की तरह किया जाता है। गामा किरणों का उपयोग कीटनाशकों के रूप में किया जाता जा सकता है।

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